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Sex Workers ने दुर्गा पूजा प्रतिमाओं के लिए मिट्टी देने से किया इनकार

Durga Puja Soil Refused by Sex Workers in Kolkata

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में RG Kar Hospital में हुई बलात्कार और हत्या की घटना के खिलाफ प्रदर्शन कर रही Sex Workers ने दुर्गा पूजा की प्रतिमाओं के लिए मिट्टी देने से इनकार कर दिया है।

उनका यह कदम न केवल एक विरोध का संकेत है, बल्कि यह समाज में उनके प्रति हो रहे भेदभाव और अत्याचारों के खिलाफ भी एक मजबूत आवाज है।

 


कोलकाता के सोनागाछी रेड-लाइट क्षेत्र की कई Sex Workers ने RG Kar बलात्कार और हत्या के मामले के विरोध में दुर्गा पूजा समारोह के लिए अपने घरों से मिट्टी देने से इनकार कर दिया है। उन्होंने अपनी सुरक्षा और अधिकारों की मांग करते हुए कहा कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलता, वे इस पारंपरिक अनुष्ठान में भाग नहीं लेंगी।


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बलात्कार और हत्या की घटना

9 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के सेमिनार हॉल में 31 वर्षीय प्रशिक्षु डॉक्टर का शव बलात्कार और हत्या के बाद मिला था। इसके बाद न केवल चिकित्सा समुदाय बल्कि पश्चिम बंगाल के सभी वर्गों में उसके लिए न्याय की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

इस संदर्भ में, एक सेक्स वर्कर ने दैनिक भास्कर से कहा, “आरजी कर अस्पताल की महिला डॉक्टर को न्याय नहीं मिला। डॉक्टर देवताओं की तरह होते हैं। जब लोग उनका सम्मान नहीं कर सकते, तो हम मिट्टी क्यों दें?”

 

मिट्टी का महत्व और सेक्स वर्कर्स का विरोध

दुर्गा पूजा के दौरान मिट्टी का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इसे देवी की प्रतिमाओं के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कोलकाता की Sex Workers ने यह स्पष्ट किया है कि वे इस बार दुर्गा पूजा की प्रतिमाओं के लिए मिट्टी नहीं देंगी। एक सेक्स वर्कर ने कहा, “जब हमारी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है, तो हम इस पारंपरिक अनुष्ठान का हिस्सा नहीं बन सकते। हमें यह महसूस होता है कि समाज हमें केवल एक वस्तु के रूप में देखता है।”

 

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दुर्गा पूजा का सेक्स वर्कर्स और मिटटी से क्या है सम्बन्ध?

पश्चिम बंगाल में नवरात्रि के दौरान दुर्गा पूजा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि दुर्गा पूजा के लिए मां की मूर्ति बनाने में वेश्याओं के आंगन की मिट्टी का उपयोग किया जाता है? कोलकाता के रेड-लाइट एरिया सोनागाछी से लाई गई मिट्टी से मां की मूर्तियां बनाई जाती हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार कुछ वेश्याएं गंगा स्नान के लिए जा रही थीं। रास्ते में उन्होंने देखा कि घाट पर एक कुष्ठ रोगी बैठा है, जो लोगों से गंगा में स्नान करने की प्रार्थना कर रहा था, लेकिन कोई उसकी मदद नहीं कर रहा था।

वेश्याओं ने उस रोगी को गंगा स्नान करवाया। वह कुष्ठ रोगी वास्तव में भगवान शिव थे। वेश्याओं ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण उनके आंगन की मिट्टी के बिना न हो सके। तब से यह परंपरा शुरू हुई।

इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति वेश्याओं के घर जाता है, तो वह अपने पुण्य कर्मों को छोड़कर जाता है, इसलिए उनके आंगन की मिट्टी को पवित्र माना जाता है। यही कारण है कि दुर्गा मां की मूर्ति बनाने के लिए वेश्यालय की मिट्टी का उपयोग किया जाता है।

 

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समाज की प्रतिक्रिया

सेक्स वर्कर्स के इस विरोध पर समाज के विभिन्न वर्गों से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोगों ने इस कदम की सराहना की है और इसे सही ठहराया है, जबकि कुछ ने इसे अनावश्यक बताया है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, “यह समय है कि हम इन महिलाओं की आवाज़ सुनें। उन्हें सम्मान और सुरक्षा मिलनी चाहिए।”

हालांकि, कुछ आलोचकों ने यह कहा है कि इस तरह के विरोध का कोई अर्थ नहीं है और यह त्योहार की भावना को कमजोर करता है। एक स्थानीय नेता ने कहा, “त्योहार का महत्व इससे कम नहीं होना चाहिए। हमें इसे एक पारिवारिक समारोह के रूप में मनाना चाहिए।”

 

न्याय की मांग

सेक्स वर्कर्स ने बलात्कार और हत्या की इस घटना के खिलाफ आवाज उठाई है और न्याय की मांग की है। उन्होंने सरकार से यह मांग की है कि उनके समुदाय की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। एक कार्यकर्ता ने कहा, “जब तक हमारी आवाज़ें सुनी नहीं जातीं, हम शांत नहीं बैठेंगे। हमें अपनी सुरक्षा की जरूरत है।”

कोलकाता की सेक्स वर्कर्स का यह विरोध केवल एक बलात्कार और हत्या के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक संघर्ष का प्रतीक है। यह समाज में उन सभी महिलाओं की आवाज़ है, जिन्हें सुरक्षा और सम्मान की आवश्यकता है। दुर्गा पूजा का यह त्योहार अब केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक संघर्ष का प्रतीक बन गया है।

 

सेक्स वर्कर्स ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपनी सुरक्षा और अधिकारों के लिए लडेंगी, और जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलता, वे अपने विरोध को जारी रखेंगी। यह घटना केवल एक समुदाय के लिए नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए एक चेतावनी है कि हमें सभी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।

 

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